Saturday, November 18, 2023

पाखंड का रथचक्र

दरवाजे बंद करके खिड़कियों से झांकते से हम | 

आखों से कुछ ,जुबान से कुछ और बयां करते से हम || 

तारीफें ,कसीदें, बयां और कहकहे  -जानते है हम तुम वो नहीं हो | 

तुम को समझ ले तो खूब को समझ जाएँ , बस ये चाहत मे हम गम हैं || 

चाहें हम कि चाहो तुम जो कह न सकें और कहना चाहें | 

एक पल मे पहचानें तुम्हें ,जो हम हर रोज़ पहचान नयी हैं || 

समझें खुदी,समझाएं तुम्हें , वो हर एक बात जो समझ न पाएं | 

एक ही हम , एक ही दुनिया , एक है सब तो कैसे उलझन | 

गोल है चक्कर तेज धार है , न तू आगे ना मै पीछे || 

सब कुछ गफलत समझ जो आये, तब ये पाएं जमीन नहीं है | 

अब बस संभल इसे सुलझालूं , जीवन की जो गति फसें है ||