दरवाजे बंद करके खिड़कियों से झांकते से हम |
आखों से कुछ ,जुबान से कुछ और बयां करते से हम ||
तारीफें ,कसीदें, बयां और कहकहे -जानते है हम तुम वो नहीं हो |
तुम को समझ ले तो खूब को समझ जाएँ , बस ये चाहत मे हम गम हैं ||
चाहें हम कि चाहो तुम जो कह न सकें और कहना चाहें |
एक पल मे पहचानें तुम्हें ,जो हम हर रोज़ पहचान नयी हैं ||
समझें खुदी,समझाएं तुम्हें , वो हर एक बात जो समझ न पाएं |
एक ही हम , एक ही दुनिया , एक है सब तो कैसे उलझन |
गोल है चक्कर तेज धार है , न तू आगे ना मै पीछे ||
सब कुछ गफलत समझ जो आये, तब ये पाएं जमीन नहीं है |
अब बस संभल इसे सुलझालूं , जीवन की जो गति फसें है ||